श्री वाराह पुराणे में गीता का माहात्म्यं बताते हुए श्री विष्णु जी कहते हैं :
श्रीविष्णुरुवाच:
प्रारब्ध को भोगता हुआ जो मनुष्य 'सदा' श्रीगीता के अभ्यास में आसक्त हो, वही इस लोक में मुक्त 'और' सुखी होता है 'तथा' कर्म में लेपायमान 'नहीं' होता |(2)जहाँ श्री गीता का विचार, पठन, पाठन तथा श्रवण होता है वहाँ मैं (श्री विष्णु भगवान) 'अवश्य' निवास करता हूँ | (6)
सूत उवाच:
जो 'अपने आप' श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है गीता 'अच्छी तरह' कण्ठस्थ करना चाहिए | अन्य शास्त्रों के संग्रह से क्या लाभ?(5)हर रोज जल से किया हुआ स्नान मनुष्यों का मैल दूर करता है किन्तु गीतारूपी जल में 'एक' बार किया हुआ स्नान भी संसाररूपी मैल का नाश करता है |(11)
जो गीता के अर्थ का पठन 'नहीं' करता उसके ज्ञान को, आचार को, व्रत को, चेष्टा को, तप को 'और' यश को धिक्कार है | उससे अधम और कोई मनुष्य नहीं है |(14)
जो मनुष्य 'स्वयं' गीता का अर्थ सुनता है, गाता है 'और' परोपकार हेतु सुनाता है वह परम पद को प्राप्त होता है |(20)
जहाँ गीता की पुस्तक का 'नित्य' पाठ होता रहता है वहाँ पृथ्वी पर के प्रयागादि 'सर्व' तीर्थ निवास करते हैं | (28)
गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्त्वार्थज्ञानमंजरी (तत्त्वरूपी अर्थ के ज्ञान का भंडार) इस प्रकार (गीता के) अठारह नामों का स्थिर मन से जो मनुष्य 'नित्य' जप करता है वह 'शीघ्र' ज्ञानसिद्धि 'और' अंत में परम पद को प्राप्त होता है | (30,31,32)
गीता का 'सनातन' माहात्म्य मैंने कहा है | गीता पाठ के अन्त में जो इसका पाठ करता है वह उपर्युक्त फल को प्राप्त होता है | (45)
इति श्रीवाराहपुराणे श्रीमद् गीतामाहात्म्यं संपूर्णम्।
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श्रीमद भगवद गीता का माहात्म्यं | सम्पूर्ण गीता सार (संक्षेप में) | Geeta Summary in Short
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